Tuesday, 10 June 2014

It is in love that religion exists and not in ceremony-in the pure and sincere love in the heart.

Photo: भगवान को देखने के लिए ये सहारा सबसे बेहतर है...

जीवन के प्रति एक विशेष दृष्टि और विश्वास जगाने के लिए कुछ विशेष परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। ऐसी ही एक परिस्थिति का नाम होता है गुरु। हम चाहे किसी भी मार्ग के व्यक्ति हों, भौतिकता का पथ हो या भक्ति की राह, कुछ न कुछ संदेह, भ्रम और प्रश्न खड़े हो ही जाते हैं।

जिज्ञासु लोग उत्तर पाना चाहते हैं। यह चाहत ही गुरु पर जाकर पूरी होती है, लेकिन याद रखिए गुरु उत्तर दे या न दे, पर समझ को एक उत्तेजना प्रदान कर देता है। वही समझ होश बनकर साधक के काम आती है।

जैसे छात्र जीवन में सफलता के लिए दो बातें जरूरी हो जाती हैं- शिक्षक और पाठच्यक्रम। इनसे भी जुड़ाव समर्पण और परिश्रम से होता है। योग्य शिक्षक मिल जाए और उपयोगी पाठच्यक्रम का चयन कर लिया जाए तो सफलता मिलती है।

यही दृश्य भक्ति के मार्ग में भी रहेगा। गुरु अपने मंत्र से मन के विसर्जन, निष्क्रियता की तैयारी कराता है। गुरुमंत्र रटने का विषय नहीं, मन को निष्क्रिय करने का साधन है। जिनके पास गुरुमंत्र है उनके लिए ध्यान में उतरना सरल है।

भौतिक जगत में भी सफलता के साथ जिस शांति की जरूरत है, वह जिस होश से आती है, उसका स्रोत ध्यान होता है। तो सद्गुरु के प्रभाव को व्यक्ति से अधिक मंत्र में मानें।

गुरु के झरोखे से भगवान को झांका जा सकता है, पर झरोखे पर ही टिक गए तो यह गुरु का अपमान होगा। जिन कारणों से सद्गुरु हमारे जीवन में आते हैं, यदि वे ही पूरे न किए जाएं तो यह सद्गुरु का अपमान ही होगा।

Om Namah Shivay

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It is in love that religion exists and not in ceremony-in the pure and sincere love in the heart. Unless a man is pure in body and mind, his coming into a temple and worshipping Shiva is useless. The prayers of those who are pure in mind and body will be answered by Shiva, and those who are impure and yet try to teach religion to others will fail in the end. External worship is only a symbol of internal worship, but internal worship and purity are the real things. Without them, external worship would be of no avail.

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