AUM NAMAH SHIVAYA!
|| शिव पंचाक्षर का रहस्य ||
|| Secret of Panchakshara ||
~ ॐ नमः शिवाय ~
~ Om Namah Shivay ~
Panchakshara is a Mahamantra which is composed of five letters, Namassivaya. A Mantra is that which removes all obstacles and miseries of one who reflects on it and bestows eternal bliss and immortality. Panchakshara is the best among seven crores of Mantras. There are seven Skandhas in Yajurveda. There is Rudradhyayi in the centre of the middle Skandha. In this Rudradhyayi there are one thousand Rudra Mantras. Namassivaya or the Siva Panchakshara Mantra shines in the centre of these one thousand Rudra Mantras.
Yajurveda is the head of Paramesvara, who is the Veda Purusha. Rudram which is in the middle is the face, Panchakshara is His eye, Siva which is in the centre of the ‘Namassivaya’ is the apple of the eye. He who does Japa of this Panchakshara is freed from births and deaths and attains eternal bliss. This is the emphatic declaration of the Vedas. This Panchakshara is the body of Lord Nataraja. This is the abode of Lord Siva. If you add ‘Om’ to the ‘Namassivaya’ in the beginning, then it becomes Shadakshara or six-lettered Mantra. ‘Om Namo Mahadevaya’ is the eight-lettered Mantra or Ashtakshara.
Panchakshara is of six kinds, viz., Sthula Panchakshara (Namassivaya), Sukshma Panchakshara (Sivaya Namah), Karana Panchakshara (Sivaya Siva), Mahakarana Panchakshara (Sivaya), Mahamanu or Mukti Panchakshara (Si).
‘Namah’ means ‘Prostration’. ‘Sivaya Namah’ means ‘Prostration unto Lord Siva’. The Jiva is the servant of Lord Siva from the Deha-Drishti. ‘Namah’ represents Jivatman. ‘Siva’ represents Paramatman. ‘Aya’ denotes ‘Aikyam’ or identity of Jivatman and Paramatman. Hence ‘Sivaya Namah’ is a Mahavakya, like ‘Tat Tvam Asi’ which signifies the identity between the individual and the supreme soul.
Pranava denotes the external form (husk) of the Lord (paddy) and Panchakshara, the internal Svarupa (rice). Pranava and Panchakshara are one. The five letters denote the five actions or Pancha Krityas of the Lord, viz., Srishti (creation), Sthiti (preservation), Samhara (destruction), Tirodhana (veiling) and Anugraha (blessing). They also denote the five elements and all creations through the combination of the five elements.
‘Na’ represents Tirodhana; ‘Ma’, the Mala or impurity; ‘Si’, Lord Siva; ‘Va’, the Arul Sakti; and ‘Ya’, the individual soul.
Take bath or wash your face, hands and feet. Wear Bhasma and Rudraksha Mala. Sit on Padmasana or Sukhasana, facing East or North, in a quiet place or room. Repeat silently the Panchakshara and meditate on the form of Lord Siva. Keep the image in the heart or space between the eyebrows.
If you practise meditation regularly, your heart will be purified. All Samskaras and sins will be burnt in toto. You will attain Siva-Yoga-Nishtha or Nirvikalpa Samadhi. You will attain the glorious Siva-Pada or Siva-Gati and become one with Lord Siva. You will enjoy the eternal bliss of Sivanandam and become immortal.
May Lord Siva bless you all!
शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.
भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.
भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत | Shiva Panchakshar Stotra
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.
धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं
इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|
~ ॐ नमः शिवाय ~
~ Om Namah Shivay ~
|| Secret of Panchakshara ||
~ ॐ नमः शिवाय ~
~ Om Namah Shivay ~
Panchakshara is a Mahamantra which is composed of five letters, Namassivaya. A Mantra is that which removes all obstacles and miseries of one who reflects on it and bestows eternal bliss and immortality. Panchakshara is the best among seven crores of Mantras. There are seven Skandhas in Yajurveda. There is Rudradhyayi in the centre of the middle Skandha. In this Rudradhyayi there are one thousand Rudra Mantras. Namassivaya or the Siva Panchakshara Mantra shines in the centre of these one thousand Rudra Mantras.
Yajurveda is the head of Paramesvara, who is the Veda Purusha. Rudram which is in the middle is the face, Panchakshara is His eye, Siva which is in the centre of the ‘Namassivaya’ is the apple of the eye. He who does Japa of this Panchakshara is freed from births and deaths and attains eternal bliss. This is the emphatic declaration of the Vedas. This Panchakshara is the body of Lord Nataraja. This is the abode of Lord Siva. If you add ‘Om’ to the ‘Namassivaya’ in the beginning, then it becomes Shadakshara or six-lettered Mantra. ‘Om Namo Mahadevaya’ is the eight-lettered Mantra or Ashtakshara.
Panchakshara is of six kinds, viz., Sthula Panchakshara (Namassivaya), Sukshma Panchakshara (Sivaya Namah), Karana Panchakshara (Sivaya Siva), Mahakarana Panchakshara (Sivaya), Mahamanu or Mukti Panchakshara (Si).
‘Namah’ means ‘Prostration’. ‘Sivaya Namah’ means ‘Prostration unto Lord Siva’. The Jiva is the servant of Lord Siva from the Deha-Drishti. ‘Namah’ represents Jivatman. ‘Siva’ represents Paramatman. ‘Aya’ denotes ‘Aikyam’ or identity of Jivatman and Paramatman. Hence ‘Sivaya Namah’ is a Mahavakya, like ‘Tat Tvam Asi’ which signifies the identity between the individual and the supreme soul.
Pranava denotes the external form (husk) of the Lord (paddy) and Panchakshara, the internal Svarupa (rice). Pranava and Panchakshara are one. The five letters denote the five actions or Pancha Krityas of the Lord, viz., Srishti (creation), Sthiti (preservation), Samhara (destruction), Tirodhana (veiling) and Anugraha (blessing). They also denote the five elements and all creations through the combination of the five elements.
‘Na’ represents Tirodhana; ‘Ma’, the Mala or impurity; ‘Si’, Lord Siva; ‘Va’, the Arul Sakti; and ‘Ya’, the individual soul.
Take bath or wash your face, hands and feet. Wear Bhasma and Rudraksha Mala. Sit on Padmasana or Sukhasana, facing East or North, in a quiet place or room. Repeat silently the Panchakshara and meditate on the form of Lord Siva. Keep the image in the heart or space between the eyebrows.
If you practise meditation regularly, your heart will be purified. All Samskaras and sins will be burnt in toto. You will attain Siva-Yoga-Nishtha or Nirvikalpa Samadhi. You will attain the glorious Siva-Pada or Siva-Gati and become one with Lord Siva. You will enjoy the eternal bliss of Sivanandam and become immortal.
May Lord Siva bless you all!
शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.
भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.
भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत | Shiva Panchakshar Stotra
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.
धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं
इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|
~ ॐ नमः शिवाय ~
~ Om Namah Shivay ~
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