Wednesday, 2 April 2014

Seekers Beware

Photo: सत्संग और कुसंग -६-

इस संसार में जितने भी तीर्थ है, सब केवल दो के ही सम्बन्ध से बने हुए है-

(१)भगवान् के किसी भी स्वरुप या अवतार का प्रागट्य, निवास, लीलाचारित्रादी के होनें से

और (२) महापुरुषों के निवास, तप, साधन, प्रवचन या समाधि आदि के होने से ।

देशगत अच्छे परमाणुओं का परिणाम प्रत्यक्ष है । आज भी जो लोग घर छोड़कर पवित्र तीर्थ या तपो-भूमि में निवास करते है, उनको अपनी-अपनी श्रद्धा तथा भाव के अनुसार विशेष लाभ होता ही है । इसका कारण यही है की उक्त भूमि, जल तथा वातावरण में ईश्वर के लीलाचरित्रादी के या महात्माओं के तपस्या, भक्ति, सदाचार, सद्गुण, सद्भाव,ज्ञान आदि के शक्तिशाली परमाणु व्याप्त है ।

विशेष और शीघ्र लाभ तो वे साधक प्राप्त कर सकते है, जो ईश्वर और महापुरुषों की इच्छा का अनुसरण, आचरणों का अनुकरण और आज्ञा का पालन करते है । जो भाग्यवान पुरुष महापुरुषों की आज्ञा की प्रतीक्षा न करके सारे कार्य उनकी रूचि और भावों के अनुकूल करते है, उन पर भगवान् की विशेष कृपा माननी चाहिये । यों तो श्रेष्ठ पुरुषों का अनुकरण साधारण लोग ही किया करते है । इसीलिये श्रीभगवान् ने भी कहा है-

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ (गीता ३/२१)

‘श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते है । वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है ।’

पर जो श्रद्धा-विश्वासपुर्वक महापुरुषों के चरित्र का अनुकरण और उसके द्वारा निर्णीत मार्ग का अनुसरण करते है, वे विशेष लाभ प्राप्त करते है ।

इसी प्रकार भगवान् और महात्माओं के चरित्र, उपदेश, ज्ञान, महत्व तत्व, रहस्य आदि की बातें जिन ग्रन्थों में लिखित हैं, महात्माओं के और भगवान् के चित्र जिन दीवालों तथा कागजों पर अंकित है; यहाँ तक की महात्माओं की और भगवान् की स्मृति दिलानेवाली जो-जो वस्तुएँ है-उन सबका सँग भी सत्संग ही है तथा श्रद्धा-विश्वास के अनुसार सभी को लाभ पहुचाने वाला है ।

जिस प्रकार स्वाभाविक ही मध्ह्यानकाल के सूर्य से प्रखर प्रकाश, पूर्णिमा के चन्द्रमा की ज्योत्स्ना से अमृत एवं अग्नि से उष्णता प्राप्त होती हैं, उसी प्रकार महात्मा पुरुष के सँग से स्वाभाविक ही ज्ञान का प्रकाश, शान्ति की सुधाधारा एवं साधन में तीक्ष्णता और उतेजना प्राप्त होती है ।

इसलिये सभी को चाहिये की अपनी इन्द्रियों को, मन को, बुद्धि को नित्य-निरन्तर महापुरुषों के सँग में और उन्ही विषयों में लगाये जो भगवान् तथा महापुरुषों के संसर्ग या सम्बन्ध से भगवद्भाव-सम्पन्न हो चुके है । ऐसा करने पर उन्हें सर्वत्र तथा सर्वदा सत्संग ही मिलता रहेगा ।......

Om Namah Shivay

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Seekers Beware

You can only seek that which you know and when you really know, you already have it. You cannot seek something which you do not know.

And what ever you are seeking and where ever you seek it? always only One; and the One is what you already are.

And so - you cannot seek something you do not know and when you know what you are seeking, you already have it.

When you seek the world, you get misery and when you want to find the way out of misery, you find the divine.

A man lost a penny and was seeking for the penny in a bush when he found a huge treasure. He was not seeking treasure but for his lost penny. In the same way, when you seek for something, you may get something else.

The Truth, Self cannot be sought directly.

Om Namah Shivay

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