Wednesday, 16 July 2014

“If you want the truth, I’ll tell you the truth: Listen to the secret sound, the real sound, which is inside you.”

Photo: कबीर वाकई समय का जादू है। और भारतवासियों के तो वे दिल में धड़कते हैं। उनके कहे एक-एक दोहे हजार धर्मशास्त्रों पर भारी है। काव्य और फिलोसोफी के जगत का कोई सबसे बड़ा चमत्कार है, तो वह कबीर ही है।

आज मैं उनके बचपन का एक किस्सा सुनाता हूँ। बनारस की गलियों में घूमते नन्हें कबीर बचपन से ही एक तीखी दृष्टि रखते थे। वस्तुओं को देखने के उनके अपने नजरिए थे। उन्हें बचपन में ही आचार्य रामानंद स्वामी के यहां शिक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ था। परंतु दिक्कत यह कि वे अन्य बच्चों की तरह नहीं थे। वे हर बात पर ना सिर्फ शंका किया करते थे, बल्कि बात-बात पर सवाल भी बहुत पूछा करते थे।

एक दिन ऐसा हुआ कि उनके गुरु के पिता का श्राद्ध था। श्राद्ध का अर्थ एक ऐसी परंपरा है जिसके तहत पंडितों को बुलाकर भरपेट भोजन कराया जाता है, ताकि जिस मृत रिश्तेदार का श्राद्ध मनाया जा रहा हो उस तक इन पंडितों को खिलाया जाने वाला भोजन पहुंच जाए। सो अपने मृत पिता तक भोजन पहुंचाने हेतु गुरु ने काफी पंडितों को भोजन पर बुलवाया। और इधर अपने शिष्यों को सुबह से ही तैयारियों में भी भिड़ा दिया। कबीर के जिम्मे दूध ले आने का कार्य आया।

गुरु की आज्ञा थी, कबीर एक बाल्टी लेकर दूध लाने निकल पड़े। पर जाने क्या हुआ कि सुबह के निकले कबीर दोपहर चढ़ते-चढ़ते भी वापस नहीं आए। इधर गुरु को बिना दूध के ही पंडितों का भोजन निपटाना पड़ा। यह तो ठीक पर कार्यक्रम निपटने के बाद गुरु को चिंता पकड़ी। वे अपने दो-चार शिष्यों के साथ बनारस की तंग गलियों में कबीर को खोजने निकल पड़े। जल्द ही उन्हें एक मरी हुई गाय के पास बाल्टी हाथ में लिए व सर पे हाथ रखकर बैठे नन्हें कबीर दिख गए। गुरु के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने तत्क्षण जिज्ञासावश पूछा- यह यहां क्या कर रहे हो?

कबीर बड़ी मासूमियत से बोले- गाय के दूध देने का इंतजार कर रहा हूँ।

इस पर गुरु बड़े लाड़ से कबीर का गाल सहलाते हुए बोले- अरे मेरे भोले, मरी गाय भी कहीं दूध देती है?

यह सुन कबीर बड़े नटखट अंदाज में बोले- जब आपके मृत पिता तक भोजन पहुंच सकता है तो मरी गाय भी दूध दे ही सकती है।

बेचारे रामानंद का तो पूरा नशा ही उतर गया। उन्होंने कबीर को गले लगा लिया। और तुरंत बोले- आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। तू तो अभी से ही परमज्ञान की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा चुका है।

खैर, कबीर ने तो कदम बढ़ा लिया पर आप कब बढ़ाओगे? यदि आप वाकई ज्ञान की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं तो बातों का अंधा अनुसरण करना बंद करें, और हर बात को अपनी भीतरी इंटेलिजेंस के तराजू पर तौलें। क्योंकि ज्ञानी होना व ज्ञान पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है।

Om Namah Shivay

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“If you want the truth,
I’ll tell you the truth:
Listen to the secret sound,
the real sound,
which is inside you.”
Kabir

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