Saturday, 30 November 2013

Change the Universe

Photo: संध्या-गायत्री का महत्व -७-

प्रात:संध्या के लिए जो बात कही गयी है, सांयसंध्या के लिए उससे विपरीत बात समझनी चाहिये । अर्थात सांयसंध्या उत्तम वह कहलाती है, जो सूर्य के रहते की जाय; मध्यम वह है, जो सूर्यास्त होने पर की जाये और अधम वह है, जो तारो के दिखायी देने पर की जाये ।कारण यह है की अपने पूज्य पुरुष के विदा होते समय पहले ही से सब काम छोड़ कर जो उनके साथ-साथ स्टेशन पहुचता है, उन्हें आराम से गाडी पर बिठाने की व्यवस्था कर देता है और 
गाडी छुटने पर हाथ जोड़े हुए प्लेटफार्म पर खड़ा खड़ा प्रेम से उनकी और ताकता रहता है और गाडी के आँखों से औझल हो जाने पर ही स्टेशन से लौटता है, वही मनुष्य उनका सबसे अधिक सम्मान करता है और प्रेम-पात्र बनता है । जो मनुष्य ठीक गाडी के छुटने के समय हाफता हुआ स्टेशन पर पहुचता है और चलते-चलते दूर से अतिथि के दर्शन कर पाता है वह निश्चय ही अतिथि की द्रष्टी में उतना प्रेमी नहीं ठहरता, यदपि उसके प्रेम से भी महानुभाव अतिथि प्रसन्न ही होते है और उसके उपर प्रेमभरी दृष्टी रखते है । उससे भी नीचे दर्जे का प्रेमी वह समझा जाता है, जो अतिथि के चले जाने पर पीछे से स्टेशन पहुचता है और फिर पत्र द्वारा अपने देरी से पहुचने की सूचना देता है और क्षमा-याचना करता है । महानुभाव अतिथि उसके भी अतिथिये  को मान लेते है और उस पर प्रसन्न ही होते है ।
 
Om Namah Shivay 

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Change the Universe

After reading “A Brief History Of Time” I realized how relatively insignificant life is, and how, compared to the universe and compared to time, it didn’t even matter if I existed at all.

When me and my dad were talking about the book, I asked if he could think of a solution to that problem. “What problem?” “The problem of how relatively insignificant we are.”

He said, “Well, what would happen if a plane dropped you in the middle of the Sahara Desert and you picked up a single grain of sand with tweezers and moved it one millimetre?” I said, “I’d probably die of dehydration.” He said, “I just mean right then, when you moved that single grain of sand. What would that mean?”

I said, “I dunno, what?” He said. “Think about it.” I thought about it. “I guess I would have moved a grain of sand.” “Which would mean?” “Which would mean I moved a grain of sand?” “Which would mean you changed the Sahara.”

“So?” “So?” So the Sahara is a vast desert. And it has existed for million of years. And you changed it!” “That’s true!” I said, sitting up. “I changed the Sahara!” “Which means?” he said. “What? Tell me.” “Well, I’m not talking about painting the Mona Lisa or curing cancer. I’m just talking about moving that one grain of sand one millimetre.”

“Yeah?” “If you hadn’t done it, human history would have been one way …” “Uh-huh?” “But, you did do it, so …?”

I stood on the bed, pointed my fingers at the fake stars, and screamed: “I changed the universe!” “You did.”

Every little action by us affects the Universe.

Om Namah Shivay 

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