जहां भी भगवान शिव की पूजा होती है या जहां भी शिव की महिमा की बात होती है वहां नंदी का ज़िक्र आता ही है। अकसर देखा जाता है कि शिव की मूर्ति के सामने या उनके मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। आइए जानते हैं भगवान शिव के वाहन नंदी से सम्बंधित एक कहानी जिससे हमें पता चलेगा की नंदी क्यों और कैसे महादेव की सवारी बने। और शिव प्रतिमा के सामने ही क्यों विराजित होते हैं नंदी?
शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की। मुनि योग और तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे। शिलाद मुनि ने संतान की कामना हेतु इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। परन्तु इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता प्रकट की और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा।
भगवान शंकर ने शिलाद मुनि के कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया।
भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन वरदान दिया - वत्स नंदी! तुम मृत्यु से भय से मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो। शंकर के वरदान के बाद नंदी मृत्यु से भय मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो गया। भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया।
इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहां पर उनका निवास होगा वहां नंदी का भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।
नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय में भगवान शिवजी ने निवास किया था। यहां नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है।
यह उस समय की बात है जब ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पांचवां निंदा करता था। उस निंदा वाले मुख को शिवजी ने काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला।
एक दिन जब वे सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कथा में बताया गया है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया।
नंदी के नेत्र सदैव अपने इष्ट को स्मरण रखने का प्रतीक हैं, नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं। उनका हर क्षण शिव को ही समर्पित है और मनुष्य को यही शिक्षा देते हैं कि वह भी अपना हर क्षण परमात्मा को अर्पित करता चले तो उसका ध्यान भगवान रखेंगे।
🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂
It is interesting to note that unlike the Vedic people who regarded the cow as sacred animal, the followers of Shiva venerate the bull! It is because Nandi, the Bull, is Shiva's vehicle. Nandi is invariably found sitting right infront of the sanctum sanctorum in every Shiva temple facing the image and looking at him all the time. In fact no one is supposed to see the chief deity in a Shiva temple without paying homage first to the seated Nandi and looking at Shiva from afar through the space between the ears and the top of his head. There are some temples in India which are exclusively built for him like the famous Nandishwara temple in Karnataka. Nandishwara in his anthromorphic form appears just like Shiva, with three eyes and four hands of which two are permanently dedicated to the veneration of Shiva while the other two carry his weapons.
Symbolically Nandi represents the animal or the tamasic qualities in man which Shiva rides and transforms with his energies. Nandishwara is humility personified. He is very knowledgeable also. Nandi taught Hanuman ji the secrets of Vedas and lessons in humility! Nandi is well versed in all scriptural knowledge and spiritual knowledge and imparted knowledge of devotion to Hanuman ji. Nandi got the divine knowledge of Agamic and Tantric wisdom taught by Lord Shiva from goddess Parvati. He could teach that divine knowledge to his Eight disciples who are identified as the progenitors of Nandinatha Sampradaya - Sanaka, Sanatana, Sanandana, Sanatkumara, Tirumular, Vyagrapada, Patanjali and Sivayoga Muni. These eight disciples are directed to eight directions of the world by Nandinatha to spread the wisdom he taught them.
It is a tradition in many parts of rural India to let a Bull roam free in each village as a mark of respect to Nandi and to inseminate the cows in the village. There are so many puranic tales available about nandi. One describes his conflict with Ravana, the anti-hero of Ramayana, and who cursed Ravana that his kingdom would be burnt by a monkey (Vanara). And later Hanuman ji burnt Lanka when he went in search of Maa Sita, who was kept prisoner by Ravana in Ashok Vatika. !
It is a tradition in many parts of rural India to let a Bull roam free in each village as a mark of respect to Nandi and to inseminate the cows in the village. There are so many puranic tales available about nandi. One describes his conflict with Ravana, the anti-hero of Ramayana, and who cursed Ravana that his kingdom would be burnt by a monkey (Vanara). And later Hanuman ji burnt Lanka when he went in search of Maa Sita, who was kept prisoner by Ravana in Ashok Vatika. !
🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂✨🐍👁🌙💀🕉🌀📿🐂
No comments:
Post a Comment