शिव भक्तों के लिए शिवजी का हर एक रूप निराला है। कहते हैं भगवान शिव भोले हैं, क्योंकि वे अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। वे अपने भक्तों के समक्ष स्वयं प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं एवं मन मुताबिक वरदान देते हैं। हिन्दू धर्म में शिव उपासना का विशेष महत्व है, कहते हैं किसी भी प्रकार की समस्या क्यों ना हो, शिवजी की मदद से सभी संकट दूर हो जाते हैं। शिवजी का जप करने से भक्त खुद में एक शक्ति को महसूस करता है। शायद इसी विश्वास के कारण भगवान शिव अपने भक्तों के बीच हर रूप में प्रसिद्ध हैं। फिर वह भोले बाबा का रूप हो या फिर शिव का रौद्र रूप। उनके भक्त शिव के हर रूप के सामने सिर झुकाकर उन्हें नमन करते हैं।
शिव की जटाओं से गंगा क्यों बहती है? शिवजी गले में सर्प धारण क्यों करते हैं? इसी तरह से कई ऐसे सवाल हैं जो खुद में एक रहस्य हैं। यूं तो शिव के हर रूप के पीछे कोई ना कोई रहस्य छिपा है, लेकिन इसी तरह का एक और सवाल भी उत्पन्न होता है। हिन्दू कथाओं के अनुसार कई जगह शिवजी को भस्म का प्रयोग करते हुए पाया गया है। वे अपने शरीर पर भस्म लगाते थे हैं।
शिव क्यों लगाते हैं भस्म? भस्म यानि कुछ जलाने के बाद बची हुई राख, लेकिन यह किसी धातु या लकड़ी को जलाकर बची हुई राख नहीं है। शिव जली हुई चिताओं के बाद बची हुई राख को अपने तन पर लगाते हैं। इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है। जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है।
इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। किंतु ना केवल भस्म के द्वारा वरन् ऐसे कई उदाहरण है जिसके जरिए भगवान शिव खुद में एवं मृत व्यक्ति में संबंध को दर्शाते हैं। हिन्दू मान्यताओं में ब्रह्माजी को जहां सृष्टि का रचयिता कहा गया है वहीं विष्णुजी इस संसार को चलाने वाले यानि कि पालनहार माने गए हैं। लेकिन शिवजी संसार को नष्ट करने वाले हैं, यानि कि जन्म के बाद अंत दिखाने वाले हैं। इसलिए वे हमेशा श्मशान में बैठकर मृत्यु का इंतजार करते हैं।
इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। किंतु ना केवल भस्म के द्वारा वरन् ऐसे कई उदाहरण है जिसके जरिए भगवान शिव खुद में एवं मृत व्यक्ति में संबंध को दर्शाते हैं। हिन्दू मान्यताओं में ब्रह्माजी को जहां सृष्टि का रचयिता कहा गया है वहीं विष्णुजी इस संसार को चलाने वाले यानि कि पालनहार माने गए हैं। लेकिन शिवजी संसार को नष्ट करने वाले हैं, यानि कि जन्म के बाद अंत दिखाने वाले हैं। इसलिए वे हमेशा श्मशान में बैठकर मृत्यु का इंतजार करते हैं।
लेकिन भस्म और भगवान शिव का रिश्ता मात्र इतना ही नहीं है। इससे जुड़ी एक पौराणिक कहानी भी है। भगवान शिव एवं उनकी पत्नी सती के बारे में कौन नहीं जानता, खुद को अग्नि को समर्पित कर चुकी सती की मृत्यु की खबर जब भगवान शिव को मिली तो वे गुस्से में अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे। वे अपनी पत्नी के मृत शव को लेकर इधर उधर घूमने लगे, कभी आकाश में तो कभी धरती पर। जब श्रीहरि ने शिवजी के इस दुखद एवं पागलपन रवैया को देखा तो उन्होंने जल्द से जल्द कोई हल निकालने की कोशिश की। अंतत: उन्होंने भगवान शिव की पत्नी के मृत शरीर का स्पर्श कर इस शरीर को भस्म में बदल दिया। हाथों में केवल पत्नी की भस्म को देखकर शिवजी और भी परेशान हो गए, उन्हें लगा वे अपनी पत्नी को हमेशा के लिए खो चुके हैं। अपनी पत्नी से जुदाई का दर्द शिवजी बर्दाश्त नहीं पर पा रहे थे, लेकिन उनके हाथ में उस समय भस्म के अलावा और कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने उस भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए अपने तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें।
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Unlike other Gods and Goddess who appear to be well decorated with divine embellishments, Lord Shiva is depicted with minimal necessity for survival, a tiger skin around his waist going through his left shoulder, a snake around his neck, half moon around his matted hair, a trident and bhasma all over his body. Each of these elements on his body signifies him conquering perseverance, calm, fear, time and lust. Whereas the application of ‘bhasma’ all over his body holds is of prime importance, which signifies his soulful connection with the dead.
Bhasma is the sacred ash which is all left of human life; signifying purity. The ash is free from earthily connections- emotions, lust, greed and fear. Lord Shiva embracing ‘bhasma’ signifies that embraces the purity of the dead. Lord Shiva spends majority of his time with the dead in the shamshana, as he believes this way he stays through the agony of those he destructed. Unlike Brahma and Shri Vishnu, who are responsible for the birth and living of human life, Shiva is denoted as the destroyer, so he embraces the last ‘ansh’ of the mortal life to make them be part of him forever.
When his first wife, Sati, incarnation of Adishakti, self-immolated herself, Shiva couldn’t control his anger, pain and agony, so he ran away with her corpse leaving everything behind in lurch. It was then when Lord Vishnu touched Sati and her corpse turned it into ashes. Unable to bear the loss of his wife, Shiva covered his entire body with her ashes as a sign that she will be with forever.
हरी ॐ तत् सत ~ ॐ नमः शिवाया! 🙏✨🙏
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