Tuesday, 10 January 2017

Shri Panchmukhi Hanuman is said to be originated at the time of war between Ravana and Lord Rama. During the war, Ravana took help of Ahiravana, the King of Pataala Lok (nether world).

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पंचमुखी हनुमान जी की महिमा अपरम्पार है। पंचमुखी अर्थात जिसके पञ्च मुख हो। हनुमान जी ने भी एक समय शत्रुओ को संहार करने के लिए पांच मुखों को धारण किया था। उसी समय से पंचमुखी हनुमान की पूजा की जाने लगी।. श्रीराम और रावण युद्ध में रावण की मदद के लिए अहिरावण ने ऐसी माया की रचना कि की सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई। उसके बाद अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में पाताल लोक ले गया। इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया। हनुमान जी तुरंत ही पाताल लोक पहुंचे और देखा कि श्रीराम और लक्ष्मण बंधक बने हुए है।
हनुमान जी ने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे है और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी हो रही है। अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना था। इस रहस्य पता चलते ही हनुमान जी ने तुरंत पंचमुखी रूप धारण कर उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरूड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख से सभी दीपकों को एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध कर दिया और प्रभु श्रीराम तथ लक्ष्मण को छुड़ाकर ले आये।
हनुमानजी हर मुख त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। हनुमान जी के पञ्च मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप में स्थापित है। हनुमान जी के पञ्च मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं।
~ पंचमुखी हनुमान जी के पूर्व दिशा का मुख वानर का हैं। जिसकी दिव्यता असंख्य सूर्यो के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश शीघ्र ही हो जाता है।
~ पश्चिम दिशा वाला मुख “गरुड” का हैं। जो संकट मोचन के रूप में है। यह मुख भ क्तिप्रद तथा विघ्न-बाधा निवारक भी माने जाते हैं। जिस प्रकार पंछियो में “गरुड़” पंछी अजर-अमर है उसी तरह हनुमानजी भी सुप्रतिष्ठित हैं।
~ हनुमानजी का उत्तर दिशा की ओर का मुख “शूकर” का है। इनकी आराधना करने से आयु,विद्या, यश और बल की प्राप्ति शीघ्र हो होती है। यही नहीं प्रतिदिन हनुमान जी की इस मुख की अर्चना करने से मान-सम्मान, ऐश्वर्य धन-सम्पत्ति तथा उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
~ हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान “नृसिंह” का है। नृसिंह भगवान् अपने भक्तों को भय, चिंता, परेशानी को शीघ्र ही दूर करते हैं। इनकी पूजा से भक्त धैर्यवान बनते है तथा धैर्यपूर्वक अपने कार्यो की सिद्धि करते है।
~ श्री हनुमान जी का ऊर्ध्व मुख ” घोड़े” के समान हैं। हनुमानजी का यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। ऐसी मान्यता है कि ह्यग्रीव दैत्य का संहार करने के लिए हनुमान जी इस रूप को धारण किये थे। हनुमान जी का यह रूप कष्ट में पडे भक्तों को वे शरण प्रदान करने का है।
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Shri Panchmukhi Hanuman is said to be originated at the time of war between Ravana and Lord Rama. During the war, Ravana took help of Ahiravana, the King of Pataala Lok (nether world).
Ahiravana appeared in the form of Vibhishana. Then, he took Shri Rama and Lakshmana to Pataala Lok. Hanuman Ji, in order to protect them, formed a fortress with his tail and entered Pataala Lok. There he found that he had to extinguish five lamps burning in five different directions at the same time to kill Ahiravana. So he appeared in the form of Panchmukhi Hanuman with Hanuman, Hayagriva, Narasimha, Garuda and Varaha faces. And, killed Ahiravana by extinguishing the five lamps.
Every Face of Shri Panchamukhi Hanuman has significance ;
Shri Hanuman faces East. He grants purity of mind and success. (Ishta Siddhi)
The South facing Narasimha grants victory and fearlessness. (Abhista Siddhi)
The West facing Garuda removes black magic and poisons. (Sakala Saubhagya)
The North facing Varaha, showers prosperity, wealth. (Dhan Prapti)
The Hayagriva mukha faces the Sky. But since we cannot see it, it is usually tilted and shown above Hanuman’s face. Hayagriva gives knowledge and good children.” (Sarva Vidya Jaya Prapti)
The five ways to worship Panchmukhi Hanuman are Naman, Smaran, Keerthanam, Yachanam and Arpanam. Hanuman Ji followed this path of Bhakti yoga in his love for Lord Rama. Lord Krishna tells Arjun in Bhagwat Geeta, “He who acts for me, who is engrossed in me, who is my devotee, who is free from attachment, he reaches me”. All these 5 qualities are enshrined in Lord Hanuman.

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