Monday, 5 June 2017

Nirjala Ekadashi derives its name from the water-less (Nir-jala) fast observed on eleventh lunar day on the waxing fortnight of Hindu month jyeshta. It is considered as the most austere and hence, most sacred of ekadashis. If observed religiously, it is said the most rewarding and granting the virtue gained by the observance of all 24 ekadshis in the year.

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आज है निर्जला एकादशी। इसे भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से साल भर की एकदाशी का पुण्य प्राप्त हो जाता है। सबसे कठिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। भगवान विष्णु को यह एकादशी बहुत प्रिय हैं। इस दिन स्नान, दान और व्रत का बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन व्रत रख कथा सुनने से निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग जलदान करते हैं। ज्येष्ठ की तपती धूप में सड़कों पर मीठा जल और शर्बत की पिलाते हैं इसके अलावा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। आज हम आपको बता रहें हैं इस व्रत की कथा और इस दिन किन चीजों का दान करना चाहिए:
करें इन चीजो ंका दान ;
साथ ही भगवान विष्णु के मंत्र- 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय:' का जाप दिन-रात करते रहना चाहिए। गोदान, वस्त्र दान, छत्र, जूता, फल आदि का दान करना चाहिए।
इस दिन बिना पानी पिए जरूरतमंद आदमी को हर हाल में शुद्ध पानी से भरा घड़ा यह मंत्र पढ़ कर दान करना चाहिए-
देवदेव हृषिकेश संसारार्णवतारक।
उदकुंभप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
इस श्लोक का अर्थ है कि संसार सागर से तारने वाले देवदेव हृषिकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए।
पढ़ें कथा:
कथा है कि एक बार महर्षि व्यास से भीम ने कहा, 'भगवन! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं। मुझसे भी व्रत रखने को कहते हैं, परंतु मैं तो बिना खाए रह नहीं सकता। मेरे उदर में तो वृक नामक अग्नि है। इसलिए चौबीस एकादशियों में निराहार रहना मेरे बस का नहीं। मुझे तो कोई ऐसा व्रत बताइए, जिसे करने में मुझे असुविधा न हो। स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो।'
तब व्यास जी ने कहा, 'कुंतीनंदन, धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, वरन सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की सहज और लचीली व्यवस्था भी करता है। ज्येष्ठ मास में सूर्य के वृष या मिथुन राशि पर रहने पर शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एकादशी का तुम व्रत करो। इसे करने से तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल भी प्राप्त होगा और तुम इस लोक में सुख, यश प्राप्त कर मोक्ष-लाभ प्राप्त करोगे। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। इसके अलावा जल पीने से व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूयार्ेदय से लेकर दूसरे दिन के सूयार्ेदय तक जल का त्याग करना चाहिए।'
भीम ने बडे़ साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया। द्वादशी को स्नान आदि कर भगवान केशव की पूजा कर व्रत सम्पन्न किया। इसी कारण इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।
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Nirjala Ekadashi derives its name from the water-less (Nir-jala) fast observed on eleventh lunar day on the waxing fortnight of Hindu month jyeshta. It is considered as the most austere and hence, most sacred of ekadashis. If observed religiously, it is said the most rewarding and granting the virtue gained by the observance of all 24 ekadshis in the year.
Nirjala Ekadashi is also known as Pandava Bhima Ekadashi, or Pandava Nirjala Ekadashi. This name is derived from Bhima, the second and strongest of the five Pandava brothers, heroes of the Hindu epic Mahabharata. The Brahma Vaivarta Purana narrates the story behind the Nirjala Ekadashi vrata vow. Bhima, a lover of food, wanted to observe all ekadashi fasts, but could not control his hunger. He approached the sage Vyasa, author of the Mahabharata and grandfather of the Pandavas for a solution. The sage advised him to observe Nirjala Ekadashi, when for one day in the year, he should observe an absolute fast. Bhima attained the virtue of all 24 ekadashis, by observing Nirjala Ekadashi.
While on other ekadashis abstinence of food is observed, on Nirjala Ekadashi, an absolute fast is observed, without partaking even water. Like other ekadashis, puja is offered to shri Vishnu, for whom ekadashis are sacred, to seek his grace. An image of Vishnu or a Saligrama stone (an iconic fossil stone in the form of Vishnu) is bathed with Panchamrita, a mixture of five foods: milk, curd, ghee (clarified butter), honey and sugar. It is then washed with water and then dressed in royal finery. Devotees remain awake the whole night and sing praises of Shri Vishnu.
Another characteristic of ekadashis is charity to Brahmins (the priest class). Clothes, food grains, umbrellas, hand-fans, pitchers filled with water, gold etc. are prescribed to be donated on Nirjala Ekadashi.
According to the Markandeya Purana and the Vishnu Purana, the day of Ekadashi is itself a form of Vishnu. The vrata observed on this day is said to wash away all sin. One who completes the vrata of Nirjala Ekadashi is mentioned to gain the favour of Shri Vishnu, who grants him happiness, prosperity and forgiveness for sins. The devotee is described to receive the merit gained by the observance of all 24 ekadshis in the year.
The observer gains longevity and moksha (salvation). One one who observes the Nirjala Ekadashi rituals is believed to be excused Yama's judgement and taken by messengers of Shri Vishnu to Vaikuntha after death.
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