Monday 29 July 2013

What is the biggest misconception people have about the relationship between money and happiness?

Photo: ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -५-

साधक-आपकी स्मृति मुझे सदा बनी रहे इसके लिए मैं इच्छा रखता हूँ, किन्तु चंच्चल और उदण्ड मन के आगे मेरी कोशिश चलती नहीं | इसके लिए क्या उपाय करना चाहिये ?

भगवान-जहाँ-जहाँ तुम्हारा मन जाए , वहाँ-वहाँ से उसको लौटा कर प्रेम से समझा कर मुझ मे पुन:-पुन: लगाना चाहिये अथवा मुझ को सब जगह समझ कर जहाँ-जहाँ मन जाए वहाँ मेरा ही चिन्तन करना चाहिये |

साधक-यह बात मैंने  सुनी है, पढ़ी है और मैं समझता भी हूँ | किन्तु उस समय यह युक्ति मुझे याद नहीं रहती इस कारण आपका स्मरण नहीं हो पाता |

भगवान-आसक्ति के कारण यह तुम्हारी बुरी आदत पड़ी है | अत: आसक्ति का नाश और आदत सुधारने के लिए महापुरुषों का संग तथा नाम जप अभ्यास करना चाहिये |

साधक-यह तो यत्किंच्चित किया भी जाता है और उससे लाभ भी होता है; किन्तु मेरे दुर्भाग्य से यह भी तो हर समय नहीं होता |

भगवान-इसमें दुर्भाग्य की कौन बात है ? इसमें तो तुम्हारी ही कोशिश की कमी है |

साधक-प्रभो ! क्या भजन और सत्संग कोशिश से होता है ? सुना है की सत्संग पूर्व पुण्य इक्कठे होने पर ही होता है |

भगवान-मेरा और सत्पुरुषों का आश्रय लेकर भजन की जो कोशिश होती है वह अवश्य सफल होती है | उसमे कुसंग. आसक्ति और सन्च्चित बाधा तो डालते है, किन्तु तीव्र अभ्य्यास से सब बाधाओं का नाश हो जाता है और उतरोतर साधन की उन्नति होकर श्रद्धा और प्रेम की वृद्धि होती है और फिर विघ्न-बाधाये नजदीक भी नहीं आ सकती | प्रारब्ध केवल पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों के अनुसार भोग प्राप्त कराता है, वह नवीन शुभ कर्मों के होने में बाधा नहीं डाल सकता | जो बाधा प्राप्त होती है वह साधक की कमजोरी से होती है | पूर्वसन्च्चित पुण्यों के सिवा श्रद्धा और प्रेम पूर्वक कोशिश करने पर भी मेरी कृपा से सत्संग मिल सकता है |

साधक-प्रभों ! बहुत से लोग सत्संग करने की कोशिश करते है पर जब सत्संग नहीं मिलता तो भाग्य की निन्दा करने लग जाते है ! क्या यह ठीक है ?

भगवान-ठीक है किन्तु उसमे धोखा हो सकता है | साधन में ढीला पन आ जाता है | जितना प्रयत्न करना चाहिये उतना करने पर यदि सत्संग न हो तो ऐसा माना जा सकता है परन्तु इस विषय में प्रारब्ध की निंदा न करके अपने में श्रद्धा और प्रेम की जो कमी है उसकी निंदा करनी चाहिये, क्योकि श्रद्धा और प्रेम में नया प्रारब्ध बन कर भी परम कल्याणकारक सत्संग मिल सकता है |

Om Namah Shivay.

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Q: What is the biggest misconception people have about the relationship between money and happiness?

Guruji: One of the things that we hear again and again when we ask people about money and happiness is a simple phrase: more is better. In general, we all believe that having more money is going to make us happier. And, while it’s true that having more money doesn’t usually make us less happy, it’s also true that simply having more money doesn’t guarantee happiness. After all, most of us have a friend, family member, or coworker who is relatively wealthy who certainly doesn’t strike us as particularly happy.

We suggest that people should stop thinking exclusively about how to get more money, and instead focus more on whether they are getting the most happiness out of the money they already have.

Om Namah Shivay.

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