Wednesday 26 February 2014

Guruji, why is a mantra given as a whisper; so secretly? Does the mantra loses its power if given in open?

Photo: एक बार एक प्रसिद्ध योद्धा उत्तर भारत से विजयनगर आया। उसने कई युद्ध तथा पुरस्कार जीत रखे थे। इसके अतिरिक्त वह आज तक अपनी पूरी जिंदगी में मल्ल युद्ध में पराजित नहीं हुआ था।

उसने युद्ध के लिए विजयनगर के योद्धाओं को ललकारा। उसके लंबे, गठीले व शक्तिशाली शरीर के सामने विजयनगर का कोई भी योद्धा टिक न सका। अब विजयनगर की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी थी। इस बात से नगर के सभी योद्धा चिंतित थे। बाहर से आया हुआ एक व्यक्ति पूरे विजयनगर को ललकार रहा था और वे सब कुछ भी नहीं कर पा रहे थे अतः सभी योद्धा इस समस्या के हल के लिए तेनालीराम के पास गए।

उनकी बात बड़े ध्यान से सुनने के बाद तेनालीराम बोला- 'सचमुच, यह एक बड़ी समस्या है, परंतु उस योद्धा को तो कोई योद्धा ही हरा सकता है। मैं कोई योद्धा तो हूं नहीं, बस एक विदूषक हूं। इसमें मैं क्या कर सकता हूं?'

तेनालीराम की यह बात सुन सभी योद्धा निराश हो गए, क्योंकि उनकी एकमात्र आशा तेनालीराम ही था। जब वे निराश मन से जाने लगे तो तेनालीराम ने उन्हें रोककर कहा- 'मैं उत्तर भारत के उस वीर योद्धा से युद्ध करूंगा और उसे हराऊंगा, परंतु तुम्हें वचन देना कि जैसा मैं कहुंगा, तुम सब वैसा ही करोगे।' उन लोगों ने तुरंत वचन दे दिया।

वचन लेने के बाद तेनालीराम बोला- 'शक्ति परीक्षण के दिन तुम सभी पदक पहना देना और उस योद्धा से मेरा परिचय अपने गुरु के रूप में कराना और मुझे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाना।'

विजयनगर के योद्धाओं ने तेनालीराम को ऐसा ही करने आश्वासन दिया। निश्चित दिन के लिए तेनालीराम ने योद्धाओं को एक नारा भी याद करने को कहा, जो कि इस प्रकार था, ‘ममूक महाराज की जय', 'मीस ममूक महाराज की जय।'

तेनालीराम ने कहा- 'जब तुम मुझे कंधों पर बैठाकर युद्धभूमि में जाओगे, तब सभी इस नारे को जोर-जोर से बोलना।'

अगले दिन युद्धभूमि में जोर-जोर से नारा लगाते हुए योद्धाओं की ऊंची आवाज सुनकर उत्तर भारत के योद्धा ने सोचा कि अवश्य ही कोई महान योद्धा आ रहा है।

नारा कन्नड़ भाषा का साधारण श्लोक था जिसमें ‘ममूक’ का अर्थ था- ‘धूल चटाना' जबकि ‘मीस’ का अर्थ भी लगभग यही था। उत्तर भारत के योद्धा को कन्नड़ भाषा समझ में नहीं आ रही थी अतः उसने सोचा कि कोई महान योद्धा आ रहा है।

तेनालीराम उत्तर भारत के योद्धा के पास आया और बोला- 'इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूं, तुम्हें मेरे हाव-भावों का अर्थ बताना होगा। दरअसल प्रत्येक महान योद्धा को इन हाव-भावों का अर्थ ज्ञात होना चाहिए। अगर तुम मेरे हाव-भावों का अर्थ बता दोगे, तभी मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूंगा। यदि तुम अर्थ नहीं बता सके तो तुम्हें अपनी पराजय स्वीकार करनी पडेगी।'

इतने बड़े-बड़े योद्धाओं को देख, जो कि तेनालीराम को कंधों पर उठाकर लाए थे और उसे अपना गुरु बता रहे थे व जोर-जोर से नारा भी लगा रहे थे, वह योद्धा सोचने लगा कि अवश्य ही तेनालीराम कोई बहुत ही महान योद्धा है अतः उसने तेनाली की बात स्वीकार कर ली।

इसके बाद तेनालीराम ने संकेत देने आरंभ किए। तेनालीराम ने सर्वप्रथम अपना दायां पैर आगे करके योद्धा की छाती को अपने दाएं हाथ से छुआ। फिर अपने बाएं हाथ से उसने स्वयं को छुआ, तत्पश्चात उसने अपने दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रखकर जोर से दबा दिया। इसके बाद उसने अपनी तर्जनी से दक्षिण दिशा की ओर संकेत किया।

फिर उसने अपने दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों से एक गांठ बनाई, तत्पश्चात एक मुट्ठी मिट्टी उठाकर अपने मुंह में डालने का अभिनय किया।

इसके पश्चात उसने उत्तर भारत के योद्धा से इन हाव-भावों को पहचानने के लिए कहा, परंतु वह योद्धा कुछ समझ नहीं पाया इसलिए उसने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। वह विजयनगर से चला गया और जाते-जाते अपने सभी पदक व पुरस्कार तेनालीराम को दे गया।

विजयनगर के राजा व प्रजा परिस्थिति के बदलते ही अचंभित-से हो गए। सभी योद्धा बिना युद्ध किए ही जीतने से प्रसन्न थे। राजा ने तेनालीराम को बुलाकर पूछा- 'तेनाली, उन हाव-भावों से तुमने क्या चमत्कार किया?'

तेनालीराम बोला- 'महाराज, इसमें कोई चमत्कार नहीं था। यह मेरी योद्धा को मूर्ख बनाने की योजना थी। मेरे हाव-भावों के अनुसार वह योद्धा उसी प्रकार शक्तिशाली था जिस प्रकार किसी का दायां हाथ शक्तिशाली होता है और मैं उसके सामने बाएं हाथ की तरह निर्बल था।

यदि दाएं हाथ के समान शक्तिशाली योद्धा बाएं हाथ के समान निर्बल योद्धा को युद्ध के लिए ललकारेगा तो निर्बल योद्धा तो बादाम की तरह कुचल दिया जाएगा, सो यदि मैं युद्ध हारता तो दक्षिण दिशा में बैठी मेरी पत्नी को अपमानरूपी धूल खानी पडती। मेरे हाव-भावों का केवल यही अर्थ था जिसे वह समझ नहीं पाया।'

तेनाली का यह जवाब सुनकर राजा व सभी एकत्रित लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े।

Om Namah Shivay

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Q: Guruji, why is a mantra given as a whisper; so secretly? Does the mantra loses its power if given in open?

Guruji : You know what psychology says, if there is anything in your mind that is bothering you, speak it out. Bring it to the field of expression. Then you are free of it. We want the mantra to stay inside. We don’t want it to be in the field of expression. We want that mantra to remain in the mind and take the mind deeper. So for your mind to go deeper, you need to have a mantra which is not in the field of expression; which is secret. That is why it is given secretly. A secret stays deeper in your heart, deep in your consciousness. So mantra is a vehicle for the mind to dwell deeper into the consciousness. That is why it needs to be given secretly. The mantra given to me may be a very open (common) mantra, but my mantra (the one given to me), I keep it a secret so that I can go deeper into meditation. This is the idea from ancient times. It is so scientific. There are mahamantras that everybody can chant loudly. But a personal mantra is what one has to keep secret. That is what we give you in the meditation course. You keep it to yourself and don’t bring it into the field of expression. But other mantras like ‘Om Namah Shivay’, and 'Om', these can be chanted loudly. They enhance the vibrations.

Om Namah Shivay

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