Tuesday 25 February 2014

Today ~ in Love and Gratitude ~ I participate.

Photo: हिंदू धर्म : ईश्वर की प्रार्थना...

ईश्वर की प्रार्थना की शक्ति के महत्व को सभी धर्मों के अलावा विज्ञान ने भी स्वीकार किया है, लेकिन हिंदू प्रार्थना को छोड़कर सब कुछ करता है। जैसे- पूजा, आरती, भजन, कीर्तन, यज्ञ आदि। आप तर्क दे सकते हैं कि यह सभी ईश्वर प्रार्थना के रूप ही तो हैं, लेकिन सभी तर्क प्रार्थना के सच को छिपाने से ज्यादा कुछ नहीं।

हिंदू प्रार्थना खो गई है, अब सिर्फ पूजा-पाठ, आरती और यज्ञ का ही प्रचलन है। वैदिकजन पहले प्रार्थना करते थे, क्योंकि वह उसकी शक्ति को पहचानते थे। अकेले और समूह में खड़े होकर की गई प्रार्थना में बल होता है। इस प्रार्थना को संध्याकाल में किया जाता था। इसे ही संध्या वंदन कहा जाता था। संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं।

क्या है संध्याकाल?

'सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है।'

वैसे संधि पांच-आठ वक्त की होती है, लेकिन प्रात:काल और संध्‍याकाल- उक्त दो समय की संधि प्रमुख है। अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समय। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।

संधिकाल में ही संध्या वंदन किया जाता है। वेदज्ञ और ईश्‍वरपरायण लोग संधिकाल में प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्‍यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं।

ईश्वर की प्रार्थना करें : संधिकाल में की जाने वाली प्रार्थना को संध्या वंदन उपासना, आराधना भी कह सकते हैं। इसमें निराकार ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का भाव व्यक्त किया जाता है। इसमें भजन या कीर्तन नहीं किया जाता। इसमें पूजा या आरती भी नहीं की जाती। सभी तरह की आराधना में श्रेष्ठ है प्रार्थना। प्रार्थना करने के भी नियम हैं। वे‍दों की ऋचाएं प्रकृति और ईश्वर के प्रति गहरी प्रार्थनाएं ही तो हैं। ऋषि जानते थे प्रार्थना का रहस्य।

संध्या वंदन या प्रार्थना प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। कृतज्ञता से सकारात्मकता का विकास होता है। सकारात्मकता से मनोकामना की पूर्ति होती है और सभी तरह के रोग तथा शोक मिट जाते हैं। संधिकाल के दर्शन मात्र से ही शरीर और मन के संताप मिट जाते हैं। प्रार्थना का असर बहुत जल्द होता है। समूह में की गई प्रार्थना तो और शीघ्र फलित होती है।

सावधानी : संधिकाल मौन रहने का समय है। उक्त काल में भोजन, नींद, यात्रा, वार्तालाप और संभोग आदि का त्याग कर दिया जाता है। संध्या वंदन में 'पवित्रता' का विशेष ध्यान रखा जाता है। यही वेद नियम है।

Om Namah Shivay

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http://www.vedic-astrology.co.in

I feel it. 
Today I feel it so strongly
that I could simply burst
from the Joy of it all. 
This connection... 
The gentle, yet powerful flow
that courses through me
as I reach up to Sun, Moon, and Stars, 
and dig deeply into Earth... 
To both nourish... and be nourished.
I feel it today.
This Universal, life-giving Flow...
And my promise on this day
Is to keep my Self open to this Flow...
This connection to Universe.
I will not be a bystander.
Today ~ in Love and Gratitude ~ I participate.

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