Saturday 11 October 2014

Virupaksha and vishwaroopa

Photo: ईश्वर है या ईश्वर नहीं है ?

एक पक्ष कहता है की ईश्वर नही है और आस्तिक पक्ष कहता है की ईश्वर है | अगर ईश्वर नहीं है यही सत्य है तो नास्तिक और आस्तिक दोनों बराबर ही रहे क्योंकि ईश्वर को मानने वालो की कोई हानि नहीं हुई परन्तु यदि ईश्वर है तो ईश्वर को मानने वाले पक्ष को तो परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है पर ईश्वर को न मानने वाला तो इस रस से हमेशा अनजान ही रह जायेगा | 

किसी वस्तु की नकारने के लिए भी उसकी विपक्ष की स्वीकृति आवश्यक है जैसे यदि हम कहे की अँधेरा है तो प्रकाश की गैर-मौजूदगी ही अँधेरा है । यदि कोई मनुष्य जन्म से अँधा है और आप उसे समझाए की नीला रंग कितना मन भवन है तो उसकी प्रतिक्रया क्या होगी ? किसी वस्तु की प्राप्ति पर ही उसका निषेध किया जाता है | कोई यह क्यों नहीं कहता की इन्सान अंडा नहीं देता क्योंकि जो चीज होती ही नहीं उसका निषेध भी नहीं बनता । जो मनुष्य अंग्रेजी भाषा को मानता है तो वह उसे सिखने का अभ्यास कर सकता है | पढ़ाई करेगा तो उसको अंग्रेजी आ जाएगी पर जो मनुष्य अंग्रेजी भाषा को मानता ही नहीं तो वह उसे सिखने का अभ्यास ही क्यों करेगा |

अब दोनों के पास एक तार ( लेटर ) आया की अमुक व्यक्ति बीमार है तो अंग्रेजी के जानकर ने पढ़ा और जाकर देखा तो बात सच निकली परन्तु जिसने अंग्रेजी भाषा को माना ही नहीं तो तो वह वहां नहीं पहुच पाएगा । ऐसे ही जब वस्तु होती है उसी को प्राप्त करने की इच्छा होती है जो वस्तु नहीं होती उसको प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती जैसे किसी के मन में यह इच्छा नहीं होती की मैं आकाश के फल खाऊ या आकाश के फुल सूंघू क्योंकि आकाश में फल फूल लगते ही नहीं मनुष्य की तो यही इच्छा रहती है की मैं सदा जीता रहूँ कभी न मरुँ सब जान लूँ कोई अज्ञान न रहे सदा सुखी रहूँ कभी दुखी न रहूँ सदा जीता रहूँ यह चित की इच्छा है सब जान लूँ यह सत की इच्छा है और सदा सुखी रहूँ यह आनंद की इच्छा है इससे भी सिद्ध हुआ की ऐसा कोई सत -चित - आनंद स्वरूप तत्व है जिसको प्राप्त करना मनुष्य चाहता है ।

ऐसे ही जो ईश्वर प्रप्ति में लगे हैं उनमे सामान्य मनुष्यों से विशेषता दिखती है उनके संग से, भाषण से शांति मिलती ही केवल मनुष्यों को ही नहीं प्रत्युत पशु पक्षी आदि को भी उनसे शांति मिलती है यह बात अगर कोई चाहे तो इसी जीवन में देख सकता है अत एव जिन्हें ईश्वर प्राप्ति हो गयी हो उनमें विलक्षणता आ गयी यदि ईश्वर है ही नहीं तो यह विलक्षणता कहाँ से आई ? हर मनुष्य अपने में एक कमी का अपूर्णता का अनुभव करता है अगर इस अपूर्णता की पूर्ती की कोई चीज नहीं होती तो मनुष्य को अपूर्णता का अनुभव होता ही नहीं जैसे मनुष्य को भूख लगती है तो सिद्ध होता है की कोई खाद्य वस्तु है प्यास लगती है तो सिद्ध होता है की कोई पेय वस्तु है ऐसे ही मनुष्य को अपूर्णता का अनुभव होता है तो यह भी सिद्ध है की कोई पूर्ण तत्व है उस पूर्ण तत्व को ही ईश्वर कहते हैं । 

कोई भी मनुष्य यदि अपने से किसी को बड़ा मानता है तो उसने वास्तव में ईश्वर को स्वीकार कर लिया क्योंकि जहाँ बढ़पन्न की परंपरा समाप्त होती है वहीँ ईश्वर है  कोई व्यक्ति होता है तो उसका पिता होता है और उसके पिता का भी कोई पिता होता है यह परंपरा जहाँ समाप्त होती है उसका नाम ईश्वर है  कोई बलवान होता है तो उससे भी कोई अधिक बलवान होता है यह बलवत्ता की अवधी जहाँ समाप्त होती है उसका नाम ईश्वर है क्योंकि उस सामान कोई बलवान नहीं

तात्पर्य यह है की बल बुद्धि विद्या योग्यता ऐश्वर्य शोभा आदि गुणों की सीमा जहाँ समाप्त होती है वही ऐश्वर्य है क्योंकि उसके समान कोई नहीं है  वास्तव में ईश्वर मानने का, श्रद्धा का विषय है विचार का नहीं क्योंकि जहाँ तक जाने की सीमा है वहीँ तक विचार संभव है ईश्वर जो असीम है उसपर विचार कैसे करें वो तो मानना ही पड़ेगा और जिज्ञासा उसी विषय में होती ही जिसके विषय में कुछ जानते हैं और कुछ नही जानते पर जिसके विषय में हम कुछ नहीं जानते उसके विषय में न ही जिज्ञासा होती ही और न ही विचार उसको तो हम माने य न माने इसमें हम स्वतंत्र हैं ।

Om Namah Shivay

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Emotions can only flow towards the form. We cannot have emotions towards the formless. We can only see , touch, smell, taste, communicate and express our emotions to a form. The completion of any emotion leads us to a space that is totally formless, which is the source of all forms.

There are two beautiful words in Sanskrit, virupaksha and vishwaroopa.

Virupaksha means eyes without the form; many people use this word as a name.

Virupa means no form, and aksha means eyes, it means eyes without the form. When we go a little deeper, then we see that the consciousness can see without the eyes, feel without the skin, taste without the tongue, and hear without the ears; this is Yoga Samadhi. Such things start happening in deep ‘samadhi’, just like in dreams? We dream without any of the five senses. So virupaksha is the consciousness that has eyes but no form.

Vishwaroopa means it is in every form.

Om Namah Shivay

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