Saturday, 5 July 2014

Second Choice Is Always There

Photo: जीवन अनुशासनबद्ध करने के दस सूत्र...

1. यम- यम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह न करना और अस्तेय का अर्थ है ‍किसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।

2. नियम- नियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्यायकाअर्थहैस्वयंकेविचारोंकाअध्ययनकरनाऔरईश्वरप्रणिधानकाअर्थहैकिसिर्फ 'एकपरमेश्वर' केप्रतिसमर्पणकरना।कहतेहैंकिएकसाधेसबसधेऔरसबसाधतोएकभीनासधे।नियमसेहीजिंदगीमेंअनुशासनआताहै।

3. आसन- आसन तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ्‍य बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।

4. अंगसंचालन/हास्य योग- यदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।

5. प्रणायाम- प्राणायाम तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।

6. ध्यान- ध्यान करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।

7. मुद्राएँ- यहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।

8. क्रियाएँ- क्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।

9. आहार- यह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।

10. विहार- विहार करना बौद्ध काल में प्रचलित था। खुली हवा में पैदल भी चला करें। कहते हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई। जरा घुमने-फिरने जाएँ और थोड़ा नंगे पैर भी चले। योग और आयुर्वेद में कहा गया है कि पैर यदि ज्यादा देर तक ढँके या बंधे हैं तो इसका असर हमारी श्वास पर होता है।

तो यह है 10 सूत्र। प्रत्येक सूत्र में से यदि सिर्फ एक उपसूत्र का ही चयन करें तो
भी 10 ही होते हैं जो बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।

Om Namah Shivay

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Second Choice Is Always There

Narendra Damodar Das Modi became country the prime minister of India after winning the 16th general elections . During election campaigns, an instance was reported in the media that at an election rally held on May 5, 2014 at Amethi, Modi said, “Log kehte hain ki Modi haar jayega toh kahan jayega. Tum chinta mat karo. Meri chai banane ki ketli ka samaan tayyar hai!“ ­ “People ask where Modi would go if he loses the elections. They need not worry. My tea kettle is ready!“ One aspect of this utterance is that it shows the strength in us wherein a man can reach the highest post having started from humble beginnings. There is another aspect. Initially the above remark may have been considered a joke but in the extended sense, we can derive from it a wise formula of life! And that formula is ­ if you lose the first option do not waste time in worrying; instead seek the second option.

Life is full of options. If you try to opt for the first choice and fail, then do not consider it as the end. It is a signal that there may be another, perhaps better option, waiting for you! Jawaharlal Nehru, former prime minister, completed his law degree from Trinity College, Cambridge. In 1912, he started his law career in Allahabad with his father Moti Lal Nehru, a successful lawyer. But after some time, he decided to shift to politics. It is said that an Indian student studying law was once asked what he would do after completing his course. He replied: “Chal gayi to Motilal, nahin chali to Jawaharlal.“ ­ “If I succeed I would be like Motilal, and if I fail, then there is the example for me in Jawaharlal!“ This wise formula applies to both non political and political spheres of life. This formula means that after losing the first chance, there still exists a possibility of achieving success. Law of nature is always with you! For example, in non-political life if you lose a job there might be the option of a second job! In political life, if you do not receive majority in the assembly , there exists an option of choosing the healthy role of opposition.

Life is full of uncertainties, then what to do? It is not possible that the result of a person's striving is always in accordance with his wishes. In such a situation, the best policy is that of adjustment. This formula saves you from unnecessary stress; makes you wise enough to utilise your time and gives you a chance to replan your life. It gives you unshakeable hope. It saves you from the killer psychology of complaints and protests.

Once in a valley I saw rivulets cascading down from mountain peaks. I noticed the way each stream flowed till it arrived at a boulder. It did not try to break the rock in order to move ahead.
when it encountered the rock, it simply swerved to the left or to the right, around the sides of the rock, and continued its journey uninterrupted. This phenomenon has a great lesson. It teaches that nature adopts the second choice if the first choice is not workable.

When you fail to attain the first option, you need to instantly divert your energy to discover the second option. Nature and history both give us a message: if you fail to achieve the first choice, try to avail the second choice that has existed all along!

Om Namah Shivay

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