Wednesday, 2 July 2014

The moment we take birth in a physical form, we are constantly doing one of three things: acting, reacting, or interacting - sometimes all three together.

Photo: मंत्र जाप कैसे करे ? और मंत्रो से 7 चक्रो को ऊर्जावान कैसे बनाए ?

मंत्रों का विज्ञान बहुत विचित्र है । यह तो ऐसा है मानो जैसे एक आलू को अलग अलग सब्जियों के साथ मिलाने से अलग अलग स्वाद देता है । ऐसे ही मंत्र तो एक ही होता है पर उसको शरीर के अलग अलग चक्रो से, प्राणो से और इंद्रियों से उच्चारण करने से उसका आनंद और फल अलग अलग होता है । अब समस्या आती है कि जब आप मंत्र करने बैठते हो या पूजा करने बैठते हो तो आपका मन भटकता है । आपका चित एकाग्र नहीं हो पाता है । इसलिए सबसे पहले मन को अंतकरण मे चित मे और शरीर मे बार बार भ्रमण कराने की कोसिस करो । आपका मन आपके शरीर से बाहर न जा पाये । अगर मन को शरीर मे रहने की आदत हो गयी तो आपके लिए मंत्र जाप करना और पूजा करना या तपस्या करना बहुत ही आसान हो जाएगा ।

हमारे शरीर मे 5 प्राण 7 चक्र और 5 इंद्री ये ऊर्जा के स्रोत होते है। ये ऊर्जा बाहर से लेते है तथा 5 कर्मेन्द्रि ऊर्जा विसर्जन के स्रोत होते है । मंत्र जाप करने से शरीर मे ऊर्जा बढ़ेगी । अगर ऊर्जा बढ़ेगी तो शरीर निरोगी रहेगा । अगर शरीर निरोगी रहेगा तो आयु बढ़ेगी । और आयु बढ़ेगी तो आप लोगो का कल्याण कर सकते हो । मंत्रों का उच्चारण आप 5 प्राण, 5 इंद्री , 7 चक्र और एक जिव्या से कर सकते हो । जिव्या से किया हुआ मंत्र तो मानो जैसे आपने अपने घर मे एक मंत्र की CD लगा रखी है । उसका आपको कोई लाभ नहीं मिलेगा तथा आपका हमेशा मन भटकता ही रहेगा ।
सबसे पहले आपको मंत्रो को अपने अन्तःकरण मे करने का अभ्यास करना चाहिए । ये सभी अभ्यास आपको कम से कम 1 महीने अवश्य करने चाहिए । एक महीने आप ॐ का लंबा उच्चारण मूलाधार चक्र से प्रारम्भ करे । ऐसा करने से आपका मूलाधार चक्र ऊर्जावान हो जाएगा । फिर आपको नाभि चक्र से ॐ का उच्चारण करना चाहिए । ऐसा करने से आपके शरीर की 72,72 10,202 नस और नाड़ियाँ ऊर्जावान हो जाएंगी । फिर धीरे धीरे सभी चक्रो और 5 प्राणो और 5 इंद्रियों से ॐ का उच्चारण करना चाहिए । ऐसा करने से आपके शरीर के 17 ऊर्जा के केंद्र ऊर्जावान हो जाएँगे । अगर आपको भूख और प्यास भी लगती है तो ये ऊर्जा के केंद्र तपस्या के समय आपको ऊर्जा की आपूर्ति करेंगे ।

इतना अभ्यास करने के बाद आप किसी एक मंत्र को आप सिद्ध करने के लिए चुन सकते है । उस मंत्र को आप अपने त्रिवेणी चक्र यानि दोनों आंखो के बीच मे नाक के उपर लेकर आए । फिर उस मंत्र के एक एक शब्द को दोनों बंद आंखो से धीरे धीरे पढे और उच्चारण करते जाये । आपकी सारी इंद्री और मन इस मंत्र पर काम करना शुरू कर देंगे । ऐसे स्थिति मे अगर मन भटकने की कोशिस भी करेगा तो आपका मंत्र मन को भटकने नहीं देगा । बस इसी मंत्र को बार बार करते जाये तो आपका मन और आपकी इंद्री आपके बस मे होंगी । बस यह आपकी तपस्या का पहला पड़ाव है । 3 वर्ष तक कडा अभ्यास करने से आप किसी भी एक मंत्र को सिद्ध कर सकते है । पर यह अभ्यास एकांत मे ही होना चाहिए । नहीं तो आपकी श्रोत और स्पंदन इंद्री आपको हमेशा भटकाती रहेगी ।

Om Namah Shivay

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* I am a subtle (non-physical) point of consciousness, which resides within this body (situated at the center of the forehead), I am the energy which brings this body to life every day. I am the energy which uses this body to see, to speak, to touch and to hear. I am the energy which experiences everything via the body. But I am not this body.

* I am a soul, a being of light, situated at the center of the forehead, radiating pure light into my body, out towards others close to me and the world. As I turn within and remember who I am, I experience my own capacity to have pure love for all others. It is a generous (kind) love that neither wants nor needs anything in return.

Soul Sustenance

Characteristics Of The World Stage

There are three things that we all have in common;

awareness - of ourselves and others

relationships - the sharing and exchange of energy with others

creativity - the ability to produce thoughts, ideas, concepts and feelings and express them.

The purpose of our life is nothing more than living life itself - to be self-aware (awareness), to be creative, to express ourselves to our highest potential (creativity) and to exchange the energy of love with those around us (relationships). But this cannot happen in the incorporeal, silent home of the soul (commonly called paramdham or shantidham). These characteristics of life require action, a costume (physical body) through which to express ourselves and a stage on which to act. The physical world provides the stage on which we can move, bring to life, create, relate and express all that is within us. For each of us the possibilities are infinite.

The moment we take birth in a physical form, we are constantly doing one of three things: acting, reacting, or interacting - sometimes all three together.

Om Namah Shivay

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