Thursday 13 June 2013

भोलेनाथ का विराट स्वरूप



भोलेनाथ का विराट स्वरूप

"जगत-पिता" के नाम से हम भगवान शिव को पुकारते हैं... भगवान शिव को सर्वव्यापी व लोग कल्याण का प्रतीक माना जाता है जो पूर्ण ब्रह्म है। धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ऐसा मानते हैं कि 'शिव' शब्द की उत्पत्ति वंश कांतौ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- 'सबको चाहने वाला और जिसे सभी चाहते है।'

शिव शब्द का ध्यान मात्र ही सबको अखंड, आनंद, परम मंगल, परम कल्याण देता है...शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है। शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है। भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुवमेश्वर हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं...

शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले-भंडारी कहा जाता है। कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। यूनानी, रोमन, चीनी, जापानी संस्कृतियों में भी शिव की पूजा व शिवलिंगों के प्रमाण मिले हैं...

भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा। भगवान शिव की महिमा से प्रत्येक भारतीय जूङा है। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से हुयी है... अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक मानव के लिए जरूरी है...

1) जटाएं... शिव को अंतरिक्ष का देवता कहते हैं, अतः आकाश उनकी जटा का स्वरूप है, जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं...

2) चंद्र... चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है...

3) त्रिनेत्र... शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र तीन गुणों- सत्व, रज, तम... तीन कालों - भूत, वर्तमान, भविष्य... तीन लोकों- स्वर्ग, मृत्यु, पाताल का प्रतीक है...

4) सर्पों का हार... सर्प जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन कर रखा है।

5) त्रिशूल... शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है... यह प्राणी मात्र के तीनों तापों (भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक) को नष्ट करता है...

6) डमरू... शिव के एक हाथ में डमरू है जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है...

7) मुंडमाला... शिव के गले में मुंडमाला है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है...
 छाल... शिव के शरीर पर व्याघ्र चर्म है... व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।

9) भस्म... शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है... यह देह की नश्वरता का प्रतीक है...
Om Namah Shivay.

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