Wednesday, 24 April 2013

AUM

Photo: महिलाओं को जब भी कभी कोई कष्ट होता है तो वे देहधारी शिवभक्त सद्गुरू से दीक्षा लेकर, भगवान शंकर की शिवलिंग में पूजा (संकल्प करके ) करके शिवलिंग के सामने ही महानन्दा की कथा का पाठ बोलकर करती है। महानन्दा एक वैश्या थी और महान् शिवभक्ता थी। बिना तपस्या के ही महानन्दा को निष्कपट-भाव से श्रद्धा-भक्ति से शिवलिंग का पूजन,प्रभु शिव के व्रत करने तथा शिवभक्त ब्राह्मणों को दान देने से घर बैठे प्रभु शिव ने दर्शन
दिये और महानन्दा के मॉंगने पर प्रभुशिव ने उसको उसके समाज सहित सभी को शिव-लोक प्रदान कर अतुल सुख दिया। यह कथा स्कन्द पुराण में महानन्दा के नाम से और श्री शिवमहापुराण के शतरूद्र संहिता के अध्याय २६ प्रभु शिव के वैश्यनाथ अवतार के नाम से वर्णित है। अतिथी सत्कार की महिमा सभी धर्म शास्त्रों में वर्णित है। स्कन्द पुराण में वेश्या पिंगला
 का चरित्र और श्री शिवमहापुराण में आहुका का चरित्र (शतरूद्र संहिता अध्याय २८ में) अतिथी सत्कार में यदि किसी महिला ने एक बार भी शिवभक्त का सत्कार कर दिया, तो निश्चित रूप से भगवान शंकर स्वयं अगले जन्म में सद्गुरू रूप से उसे दीक्षा देकर उसकी सद्गति करते है। 
आजकल कुछ कपटी लोगों ने एक भ्रामक प्रचार फैला रखा है कि स्त्रियों को शिवलिंग के स्पर्श एवं पूजन का अधिकार नहीं है। रूद्राक्ष और भ्रस्म त्रिपुण्ड़ लगाने का अधिकार नहीं है। विष्णु भक्तों को रूद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए, भस्म त्रिपुण्ड़ नहीं लगाना चाहिए, शिवलिंग का पूजन नहीं करना चाहिए,
शिवजी का प्रसाद नहीं खाना चाहिए इत्यादि। 

वसिष्ठ की पत्नी अरून्धती जिसके दर्शन आज भी आकाशमण्डल के सप्तर्षि मण्ड़ल में होते हैं। यह अरून्धती पूर्व जन्म में ब्रह्मा की पुत्री सन्ध्या थी। सन्ध्या नेे गुरू वसिष्ठ से ऊॅं नम: शंकराय ऊॅं मंत्र की दीक्षा लेकर चार युगों तक हिमालय की चन्द्रभागा नदी के तट पर प्रभु शिव के लिए तपस्या की। ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया ने, अपने पति अत्रि के साथ प्रभु शिव की पूजा करके ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अंश से एक-एक पुत्र दुर्वासा, दत्तात्रेय और चन्द्रमा उत्पन्न किये। चंचुला ब्राह्मणी भ्रष्ट हो गई थी। उसने देहधारी गुरू से दीक्षा लेकर शिवोपासना से सद्गति प्राप्त की। सूर्यवंशी राजा दशरथ की पत्नियॉं कौशल्या - सुमित्रा - कैकई ने शिव-पूजन से ही श्री विष्णु के अंश से चार पुत्र राम-लक्ष्मण- भरत-शत्रुघ्न प्राप्त किए। भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न सुधर्मा ब्राह्मण की पुत्री घुष्मा ने शिवलिंग का पूजनकर बिना तपस्या के ही प्रभु शिव का साक्षात्कार कर लिया और उसके नाम से द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग(एलोरा गुफा के समीप) विराजमान है।

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AUM

Aum heard itself,
and it was
Aum.
I am the beginning
I am the waking!
I am the now
I am the dreaming
and in the end,
I am the sleeping!
All is Aum!
Yet, Aum is more,
The being, withdrawal, and the making,
Aum is all four.

{From Naam Roop -A Tribute to the Divine}

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